ज्ञानमूर्ति ब्रहमांडविद्
महामानव शिखरपुरुष संतशिरोमणि
आचार्यश्री सुदर्शन जी महाराज
सृष्टि संरचना शिव-शक्ति से सप्राण बनकर संचारित
होती रहती
हैं। इस प्रक्रिया में सुन्दर-असुंदर प्रकृति-पुष्प उपजते खिलते बिखरते
रहते है। सदाशिव की सदय दृष्टि जब सृष्टि में होती है, तब सुग्रह सुमन का शुभागमन
होता हैं।और वह सुमन अपने सुकर्मों का विस्तार कर उच्चता व दिव्यता के शीर्ष पर
पहुँचता हैं। इस कड़ी में माता सीता
की प्राकाट्य भूमि सीतामढ़ी बिहार ने समय के दीर्घ
अवधि के बाद भगवान भोलेनाथ व भवानी की विशेष अनुकम्पा से
आचार्यश्री सुदर्शन के रूप में एक ऐसी विभूति
को प्रादुर्भूत किया जो असंदिग्ध रूप से अपनी आभा, महिमा, शक्ति और भक्ति से सकल
संसार को आलोकित कर रहा है। यह महामानव सभी तुलना
के परे है, क्योंकि यह समस्त साधारण
मापदंडो और उपदेशों से ऊपर है। इस दिव्यपुष्प का मन प्रकाशमान है, जो समस्त ज्ञान के
श्रोत के साथ अपना संयोग स्थापित करने में समर्थ है।
एम्o.
एo., पीo-एचo डीo., विद्यावाचस्पति, साहित्यविशारद,
शैक्षणिक साहित्य रत्नरुपी उपाधियो से अलंकृत, कृषि संस्कृति से ऋषि संस्कृति
के अध्यात्मिक यात्रा के पथिक आचार्य
श्री सुदर्शन
जी महाराज सकल ब्रहमांड चिन्तक के रूप में स्थापित शिखर-पुरुष
हैं, महामानव
हैं, और भारतीय संत सरणियों में शिरोमणि
हैं। इनका अवतरण बिहार की पावन धरती
पर उन कड़ियों में माना जाता है, जिनमे बुद्ध महावीर चाणक्य पाणिनि और राजेंद्र
प्रसाद जैसे विभूतियों को याद किया जाता है। इन्होने अपने जीवन में जो साधनाएँ
की हैं,
वे साधनाएँ ही तो
इनके दिव्यस्वरूप को
स्पष्ट करती
हैं।
एक-एक स्वरुप पर एक-एक ग्रन्थ लिखा जा सकता
है।
एक-एक महाकाव्य लिखा जा सकता
है।
सत्य कथन
है।
बंद सुमन सा लाल होठों पर,
मुस्कान अभी बाकी
है।
फेंके हुए उपेक्षित पत्थर,
उनमें फूल खिलना बाकी
है।।
इसी भाव को अपने ह्रदय में स्थापित करके आचार्य
श्री सुदर्शन
सामाजिकों के हित में
अधोलिखित संस्थानों की स्थापना व सफल संचालन करते हुए देश-दुनिया के विशिष्ट मंचो
से नानाविध पुरस्कारों को पाते हुए, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञ पुरुष के रूप में
जनमानस की जिउहा पर आसीन
हैं।
1.
डॉo वाईo केo सुदर्शन कृष्णा सिंह एजुकेशनल
फाउण्डेशन ट्रस्ट
(रजिo)
2.
कृष्ण सुदर्शन
चैरिटेवल ट्रस्ट
3. आचार्य
सुदर्शन
फाउण्डेशन
4.
हमें भी पढाओं एजुकेशन
फाउण्डेशन
5.
आत्म-कल्याण केंद्र, गुड़गाँव
6.
पटना सेंट्रल स्कूल सोसाइटी
7.
कृष्णा निकेतन गर्ल्स स्कूल सोसाइटी
8.
माँ जगतारिणी शक्तिपीठ, सीतामढ़ी
9. आचार्य सुदर्शन
सेंट्रल लायंस आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेण्टर सीतामढ़ी
10.
गीतांजलि (आचार्य
श्री के भक्ति संगीतो पर आधारित)
11.
आचार्य सुदर्शन स्पोर्ट्स एशोसियेशन
सम्प्रति, परमपिता परमेश्वर के दिव्य शक्तिपात जब इस महामानव पर हुआ तो ये एकांतवासी
हो गये। धारणा, ध्यान और समाधि के सफल प्रक्रियाओं से गुजरकर इनका तन-मन दिव्यता के
अलौकिक प्रकाश से आलोकित हुआ,
जिसके परिणामस्वरूप बादशाहपुर, गुड़गाँव
में आत्म-कल्याण केंद्र
रूपी कमल पुष्प का उदय हुआ।
०७ जुलाई २००६ की पावन
बेला में भगवान सूर्य से अनंत रश्मियों को
पाकर आचार्य
श्री सुदर्शन
बादशाहपुर, गुड़गाँव
(हरियाणा)
में सोहना रोड पर आत्म-कल्याण केंद्र
की
स्थापना करके देश दुनिया के तमाम समुदायों का सर्वात्मकल्याण करने के लिए कृतसंकल्पित हुए। अपने पावन संकल्पों
को सांसारिक रूप देने के क्रम में पुज्यश्री ने आत्म कल्याण केंद्र के तहत
हमें भी पढाओ, नारी जागरण समिति, वरिष्ठ नागरिक आवास, नशा विमुक्ति अभियान
आदि कई सेवा
प्रकल्पों का सफल संचालन करके भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त में छोटे-छोटे
गाँवों से
लेकर महानगरों तक लघु/दीर्घ शाखाओं की स्थापना करके तमाम जनमानस के बीच हंसोंमुखी
सभ्यता को जीवंत और उत्कर्षमयी बनाकर संत समाज के बीच शिरोमणि स्वरुप राजमुकुट
धारण किया।
आत्मकल्याण केंद्र सुदर्शन धाम में ध्यानस्थ अवस्था में आचार्यश्री को प्रभु
श्रीराम
का आज्ञाबोध और परम आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसी मुद्रा में प्रभु की जीवनगाथा के
अनेकानेक रहस्यमय तथ्यों का सुबोधाशीष पाकर पूज्य महाराजश्री ने संगीतमय श्रीराम
कथा के अमृतमय प्रवचनों की ज्ञान गंगा में श्रद्धालु
भक्तों
को अवगाहन कराने का
महासंकल्प लिया। कथाक्रम के माध्यम से
इन्होंने भारत ही नहीं, विश्व के अन्य देशों के जनमानस में प्रभु श्रीराम के जीवनगाथा को संगीतमय रूप देकर प्रवचन की ऐसी पीयूषधारा बहायी की देश-दुनिया के तमाम कथावाचकों, समाज सुधारकों एवं संत समाज ने इनकी
भूरी-भूरी प्रसंशा की।
इन्होंने दूरदर्शन के प्रतिष्ठित चैनलों, आस्था, संस्कार, जी, जागरण, श्रद्धा, सौभाग्य आदि के माध्यम से विश्व के १३८ देशों में संगीतमय श्रीरामकथा
का सन्देश देकर जन-जन के चरित्र में श्रीराम की आदर्शवादिता एवं शुचिता को धारण
करने की विशेष शक्ति प्रदान की है।
उपनिषद के ऋषि के रूप में
सृष्टि रहस्य को उदघाटित करते हुए, सुकरात के रूप में
जनसमूह को विवेक बाँटते हुए और लोओत्से की तरह कृत्रिमता त्यागने की शिक्षा एवं
बालमनोविज्ञान पर अपनी तूलिका से सर्वप्रशंसित और सुग्राह् रंग बिखेरनेवाले
आचार्यश्री सुदर्शनजी महाराज ने साहित्य साधकों के बीच सशक्त हस्ताक्षर के रूप में
रहते हुए अधोलिखित साहित्यों की रचना की है।
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